भारत में यूरोपीय कम्पनी का आगमन
भारत आने वाली पहली यूरोपीय कम्पनी पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कम्पनी था। जिसकी स्थापना 1498 ई. में हुई। दूसरी कम्पनी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी था। जिसकी स्थापना 31 दिसम्बर 1600 ई. को हुई थी। तीसरी कम्पनी डच (हॉलैण्ड ) ईस्ट इंडिया कम्पनी था। जिसकी स्थापना 1602 ई. में हुआ था। चौथी कम्पनी डेनिस (डेनमार्क ) ईस्ट इंडिया कम्पनी था। जिसकी स्थापना 1616 ई. में हुई थी। पाँचवी कम्पनी फ्रेंच ईस्ट इंडिया कम्पनी था। स्थापना 1664 ई. में हुआ था। छठी कम्पनी स्वीडिश (स्वीडेन ) ईस्ट इंडिया कम्पनी था। जिसकी स्थापना 1731 ई. में हुआ था।
पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कम्पनी
भारत आने पहला पुर्तगाली यात्री वास्कोडिगामा था , जो 1498 ई. केरल के मालाबार समुद्री तट के कालीकट बन्दरगाह पर पंहुचा था। पुन: 1501 ई. वास्कोडिगामा भारत आया। 1503 ई. पुर्तगाली ने अपना पहला व्यापारिक कोठी (मालगोदाम )के रूप में केरल में किनौर के निकट कोचीन दुर्ग का निर्माण कराया। 1505 ई. में सेंट एंजेलो फोर्ट का निर्माण कराया।
1505 ई. में पुर्तगाल का पहला गवर्नर जनरल अल्फांसो डी अल्मोडा को बनाया जो 1509 ई. तक रहा। इन्होने समुद्री निति पर बल देते हुए ब्लू वाटर पॉलिसी को अपनाया। इसके समकालीन बिजय नगर के शासक बीर नरसिंह था।
दूसरा पुर्तगाली गवर्नर 1509 ई. अल्बुकर्क बना जो 1515 ई. तक रहा। इन्होने 1510 ई. में बीजापुर के शासक से गोवा को छीन लिया , जिस कारन इसे पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कंपनी के वास्तविक संस्थापक भी कहा जाता है। इन्होने पुर्तगाली की जनसंख्या में वृद्धि के लिए पुर्तगाली पुरुष और भारतीय महिला के विवाह का नियम बना दिया। 1515 ई. में इसकी मृत्यु हो गया , इसे गोवा में ही दफ़ना दिया गया।
1588 ई. में पुर्तगाली ने भारत के अतिरिक्त मल्लका और कोलम्बो में भी व्यापारिक कोठी स्थापित किया। पुर्तगाली का प्रमुख केंद्र गोवा रहा। जिस पर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी पुर्तगाली का अधिकार रहा। 1961 ई. में सैनिक करबाई द्वारा भारत सरकार गोवा को मुक्त कराया। जहाज निर्माण और प्रिंटिंग प्रेस के क्षेत्र में पुर्तगाली का प्रमुख योगदान रहा।
भारत में पहला प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना 1557 ई. गोवा में गोवा में किया गया।
डच ईस्ट इंडिया कम्पनी
डच ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आने वाली तीसरी कम्पनी थी जिसकी स्थापना 1602 ई. में हुई थी।
डच कम्पनी अपना पहला व्यपारिक कोठी 1605 ई. में मछलीपट्नम (आंध्र प्रदेश ) में स्थापित किया।
भारत आने बाला पहला डच यात्री कर्नेलिश द हस्तमान था जो व्यक्तिगत रूप से 1596 ई. में भारत आया था। डच कम्पनी मछलीपट्नम के अतिरिक्त अपनी व्यापारिक कोठी पुलिकत (तमिलनाडु ) ,सूरत ,पटना चिनसुरा (कर्नाटक ) ,एवं आंध्र प्रदेश के नागपटनम में भी स्थापित किया था। डच कम्पनी का मुख्य उद्देश्य भारतीयों के साथ मशाला व्यापार करना था।
1759 ई. में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने डच ईस्ट इंडिया कम्पनी को बेदरा के युद्ध में पराजित कर दिया और उसके बाद डच ईस्ट इंडिया के सभी व्यापारिक कोठी पर अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अधिकार कर लिया। डच कम्पनी मुख्या रूप से हॉलेंड की कम्पनी थी।
डेनिस ईस्ट इंडिया कम्पनी
डेनिस ईस्ट इंडिया कम्पनी डेनमार्क की कम्पनी था, जिसकी स्थापना 1616 ई. में किया गया था।
डेनिस कम्पनी ने अपना पहला व्यापारिक कोठी केरल के ट्रावनकोर में स्थापित किया था। जबकि दूसरा कोठी बंगाल के श्रीराम पुर में किया था। 1845 ई. में डेनिस ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी सभी व्यापारिक कोठी को अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी के हाथो बेच कर स्वदेश चला गया
फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी
फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना फ़्रांस के तत्कालीन शासक लुइ सोलहवाँ एवं उसके वित्त मंत्री कलवर्ट की सहायता से 1664 ई. में किया गया था। इस कंपनी ने अपना पहला व्यापारिक कोठी के स्थापना 1668 ई. में सूरत में किया तथा दूसरी व्यापारिक कोठी की स्थापना 1669 ई. में मछलीपट्नम में किया।
1673 ई. में बीजापुर के शासक से आज्ञा लेकर मार्टिन वार्ड नामक फ़्रांसिसी ने पांडिचेरी नामक एक नई
बस्ती की स्थापना किया जो बाद में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रमुख व्यापारिक केंद्र बना।
1742 ई. में फ्रांसीसी कम्पनी का गवर्नर डूप्ले को बना कर भेजा गया। इन्हीं के काल में फ्रांसीसी कम्पनी एवं अंग्रेजी कम्पनी के बीच कर्नाटक के क्षेत्र में युद्ध हुआ जिसे कर्नाटक युद्ध के नाम से जाना जाता है।
1760 ई. में बॉडी वाश में अंग्रेजी कम्पनी ने फ्रांसीसी कम्पनी को पूरी तरह से पराजित कर दिया। इस युद्ध के बाद भारत में फ्रांसीसी कम्पनी का प्रभाव काम हो गया। हालांकि भारत का कुछ क्षेत्र स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी फ्रांसीसी कम्पनी का उपनिवेश बना रहा। जिसे फ्रांसीसी कम्पनी 1959 ई. में भारत को सौंप दिया।
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डच ईस्ट इंडिया कम्पनी
डच ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आने वाली तीसरी कम्पनी थी जिसकी स्थापना 1602 ई. में हुई थी।
डच कम्पनी अपना पहला व्यपारिक कोठी 1605 ई. में मछलीपट्नम (आंध्र प्रदेश ) में स्थापित किया।
भारत आने बाला पहला डच यात्री कर्नेलिश द हस्तमान था जो व्यक्तिगत रूप से 1596 ई. में भारत आया था। डच कम्पनी मछलीपट्नम के अतिरिक्त अपनी व्यापारिक कोठी पुलिकत (तमिलनाडु ) ,सूरत ,पटना चिनसुरा (कर्नाटक ) ,एवं आंध्र प्रदेश के नागपटनम में भी स्थापित किया था। डच कम्पनी का मुख्य उद्देश्य भारतीयों के साथ मशाला व्यापार करना था।
1759 ई. में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने डच ईस्ट इंडिया कम्पनी को बेदरा के युद्ध में पराजित कर दिया और उसके बाद डच ईस्ट इंडिया के सभी व्यापारिक कोठी पर अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अधिकार कर लिया। डच कम्पनी मुख्या रूप से हॉलेंड की कम्पनी थी।
डेनिस ईस्ट इंडिया कम्पनी
डेनिस ईस्ट इंडिया कम्पनी डेनमार्क की कम्पनी था, जिसकी स्थापना 1616 ई. में किया गया था।
डेनिस कम्पनी ने अपना पहला व्यापारिक कोठी केरल के ट्रावनकोर में स्थापित किया था। जबकि दूसरा कोठी बंगाल के श्रीराम पुर में किया था। 1845 ई. में डेनिस ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी सभी व्यापारिक कोठी को अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी के हाथो बेच कर स्वदेश चला गया
फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी
फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना फ़्रांस के तत्कालीन शासक लुइ सोलहवाँ एवं उसके वित्त मंत्री कलवर्ट की सहायता से 1664 ई. में किया गया था। इस कंपनी ने अपना पहला व्यापारिक कोठी के स्थापना 1668 ई. में सूरत में किया तथा दूसरी व्यापारिक कोठी की स्थापना 1669 ई. में मछलीपट्नम में किया।
1673 ई. में बीजापुर के शासक से आज्ञा लेकर मार्टिन वार्ड नामक फ़्रांसिसी ने पांडिचेरी नामक एक नई
बस्ती की स्थापना किया जो बाद में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रमुख व्यापारिक केंद्र बना।
1742 ई. में फ्रांसीसी कम्पनी का गवर्नर डूप्ले को बना कर भेजा गया। इन्हीं के काल में फ्रांसीसी कम्पनी एवं अंग्रेजी कम्पनी के बीच कर्नाटक के क्षेत्र में युद्ध हुआ जिसे कर्नाटक युद्ध के नाम से जाना जाता है।
1760 ई. में बॉडी वाश में अंग्रेजी कम्पनी ने फ्रांसीसी कम्पनी को पूरी तरह से पराजित कर दिया। इस युद्ध के बाद भारत में फ्रांसीसी कम्पनी का प्रभाव काम हो गया। हालांकि भारत का कुछ क्षेत्र स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी फ्रांसीसी कम्पनी का उपनिवेश बना रहा। जिसे फ्रांसीसी कम्पनी 1959 ई. में भारत को सौंप दिया।
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